क्यूँकि ज़िंदगी सिर्फ़ एक पल की होती है और वो एक पल ही आख़िरी भी होता है आख़िरी दफ़ा । लेकिन इस आख़िरी पल से पहले की कहानी महज़ एक लीला होती है जिसे ईश्वर रचते है ज़िंदगी को लीलने के लिये । एक परिवार जहाँ एक छत है और अनेकों कमरे और इन्हीं कमरों में है क़ैद है अनेको जज़्बात और कुछ गिरगिट रूपी प्यार के साथ करईत जैसा विषैला मन । आज जीवन के इस पड़ावो पर आख़िरकार उस बीज दाता जिसको पिता कहाँ जाता है और यक़ीनन सृष्टि में जो भगवान का रूप होता है उसका उसने त्याग कर दिया । एक ऐसा पाप जिसका ना कोई प्रायश्चित है और ना जिसकी कोई माफ़ी । लेकिन बतौर पिता जब पलट वो देखता है तो सिवाय शिकायतों और कहानियों के उसके हिस्से कुछ हाथ नहीं लगता है , ना वो एक अच्छा पिता होता है ना पती , ना भाई ना कोई हितैषी यक़ीनन बच्चे ज़रूर आभागे और यतिम हो जाते है उसके शायद इन सब वजहों से आख़िरकार उसने आज दिल से उसे निकाल दिया । एक बच्चे से तो ताउम्र शिकायत रहती है पिता को लेकिन ये अभागा पुत्र अपने पिता से शिकायतों की लंबी चौड़ी लिस्ट लिए बैठा है !!
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