कर्म

ज़िंदगी के अजब से मोड़ से आज वास्ता हुआ जहाँ से बहुत सारे रास्ते ख़त्म होने के साथ एक अनजान सफ़र की ओर ज़िंदगी जाती दिख रही है । होश सम्भालने से आज तक सब का मतलब परिवार था उसका दायरा सीमित बहुत जादे सिकुड़ता जा रहा है और निश्चित ही ज़िंदगी के उस हिस्से से जा कर मिलने वाला है जहाँ अपनी का मतलब माँ , बाप , भाई और बहन होगा परिवार नहीं । मैंने ईश्वर से अगर कुछ सबसे पहले माँगा तो वो हमेशा वो परिवार है जिसको देख कर मैं बड़ा हुआ हु और इसके इस दौर में जाते देख मन विचलित हो उठता है । आज जब रामायण मुझे भाई , परिवार , सही और ग़लत की सीख दे रहा है वही एक ऐसी स्थिति मे लेकर जा रहा है जहाँ मैं राम से मंथरा , मंदोदरी से विभीषण और हनुमान से रावण का चित्रण घटित हो रहे घटनाओं से जोड़ पा रहा हु । 

पिता जिसके पुण्य और तथाकथित पाप से आये दिन मेरा वास्ता हो रहा है और मैं एक ऐसे धर्म संकट से गुज़र रहा हु जहाँ मुझे सब अपनी जगह सही और दूसरी ओर ग़लत लग रहे है , ईश्वर की जो ये लीला है , जो परीक्षा है उसमें ख़ुद को एक ऐसे रूप मे देख रहा हु जिसकी कल्पना मात्र से ख़ुद की रूह काँप जाती है । और शायद ये बदलाव आने से पहले मुझे मृत्यु आ जाये क्यूँकि मेरे लिये एक रिश्ता जो सबसे पवित्र रहाँ है तो वो है मेरे परिवार के प्रति मेरी आस्था । यक़ीनन पिता के जाने के बाद शायद उन पर लगते अनगिनत आरोपो से बरी हो जाऊँ लेकिन क्या अगर उनके भाव वैसे नहीं थे जैसा मैं देख रहा या दिखाया जा रहा । उस माँ का क्या जिसकी ख़ुशी और उसका ग़म उसके पती के सुख दुःख से जुड़ा है , उस बेटी का क्या जिसके सामने उसके पिता के चरित्र ऐसे तार तार कर दे की वो अपने जन्म दाता को ही संदेह भाव से देखे । आज नहीं तो कल वो तो चले जायेंगे लेकिन क्या होगा उस भाव का , उस करुणा का ,उस आक्रोश का , उस पीड़ा का और उन आरोपों का जिनका अस्तित्व भी उनकी आत्मा के साथ चली जायेगी । 

उन आँसुओ का क्या जो उनके लिये बहेंगे पर  ऐसा कैसे ? कल तक कोसने वालीं निगाहों से आँसू ? क्या सब कुछ फ़रेब है ? क्या मोह माया सब दिखावा है ? ईश्वर की लीला के हम सब मोहरें है और लगता है इस अंत के शुरुआत के सूत्रधार के तौर मुझे भी उन्होंने इसमे शामिल कर लिया है । बाक़ी ईश्वर जाने क्या लिखा है उन्होंने या क्या लिखवाने वाले कब किसके हाथ से ।

इस रामायण का कौन राम होगा और कौन रावण , कौन सीता और कौन सुप्रनखा ,कौन लक्ष्मण और कौन विभीषण होगा लेकिन तुलसीदास यक़ीनन मैं हूँगा ।

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