लाश की सगाई

आधुनिकता के दौर में आज भी परंपरागत किस्सो की कमी कहां है। ये बात साल 2013 , जनवरी की है जब काफी जद्दो जहद के बाद आखिरकार प्रेम को कविता मिल ही गई और दोनों की सगाई के लिए दोनों परिवार मान गए ।

सगाई की तैयारी में प्रेम और कविता इतने मशगूल थे की उन्हें जैसे कोई नई जिंदगी मिल गई हो। शाम के ढलने तक प्रेम के परिवार से लोगों का आना शुरू हो गया और रात होते होते मौसी मौसा , जीजा दीदी और मामा मामी सब पहुंच गई सिवाए उसके मामा के लड़के के , जो की किसी बड़े भाई से कम नहीं थे । 

प्रेम के परिवार में हमेशा से ही ननिहाल पक्ष का दबदबा बना हुआ था और ऐसे में जो लोग भी सगाई में आए थे वो सब के सब ननिहाल पक्ष (किन्हीं कारणवश) से थे। महज 20 किलोमीटर की दूरी पर के छोटे मामा के बेटे रहते थे जिनका एक दौर में प्रेम पर काफ़ी एहसान था लेकिन अपने पारिवारिक तनातनी और आर्थिक स्थिति के नाते प्रेम की छोटी मामी ने अपने बेटे और बहू को प्रेम से दूर कर दिया और इत्तेफाक से उसी मामी ने दूसरे मामा के बेटे गौरव को भी ऐसा दूर किया की वो सब लोगों को प्रेम के पास छोड़ कर बिना चौखट पर कदम रखे अपने मौसी के घर आ गए।

प्रेम बस यही सोच रहा था की अगर वो किसी के सगाई,तिलक,हल्दी या शादी में सबसे ज्यादा खुश था और हर पल मौजूद था तो वो थे गौरव भैया लेकिन आज वही भैया एक ऐसे दिन जब प्रेम को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी , वो वहा नहीं मौजूद थे। खैर रात को सब लोगों ने खाना खाया और सो गए ।

एक नई सुबह एक नया सौगात और नई शुरुआत के उम्मीद से जब प्रेम उठा तब तक फल की टोकरी,कपड़े और जेवर सब एक बड़े से थाल में सजा कर उसके जीजा दीदी ने रख दिया था और बस अब हर कोई जल्दी से तैयार हो कर घर से निकलना चाह रहा था ।

आखिरकार कविता के घर के बाहर प्रेम के छोटे मामा और गौरव भैया भी वहा आ गए और ये देख कर प्रेम के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, पर प्रेम को क्या पता था जबसे उसे घर से निकाल कर , भूखा छोड़ कर ऐसे ही लावारिश उसके छोटे मामा ने उसे छोड़ दिया था उसके बाद भी वो जिंदा था और ये बात शायद उसके मामा को नहीं पता थी क्योंकि महज़ एक घंटे के अंदर ही उसके भाई और मामा किसी भी हाल में वहा आए सभी मेहमानों को छोटी मामी के फरमान पर वहा से कैसे भी लेकर निकालना चाहते थे और उसके लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया और ये सब देख कर प्रेम के अंदर पहली बार उनका वो चेहरा सामने आया जो वो कभी कल्पना में भी उम्मीद नहीं कर सकता था ।

खैर कुछ नाच गाने और छोटे से फंक्शन के बाद सब लोग निकलने लगे इसी बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने प्रेम को ये सोचने पर विवश कर दिया की वो जिंदा है भी या नहीं। जैसे अक्सर फिल्मों में होता है किराए के मेहमान वैसे ही जहां एक ओर कविता का पूरा परिवार छत से अपने होने वाले दामाद को खुद से जुड़ता देख रहा था वही वो दामाद अपनी गाड़ी से सबको उतार कर अकेला निकल रहा था और ये सब तमाशा ऊपर से कविता का परिवार देख कर हैरान हो रहा था की आखिर ऐसे क्यों हुआ होगा ।

नम आंखो के साथ प्रेम अकेले अपने घर के लिए वहां से निकलने लगा और तभी एक एक ख़्याल उसके मन में आया कहीं ये भैया और छोटे मामा सिर्फ़ छोटी मामी से मिलवाने के लिए तो नहीं यहां तक आए थे।

सेज सजा कर जैसे ही उन लोगों ने प्रेम से बाकी लोगो दूर किया मानों ऐसा प्रतीत हुआ की किसी ने उसके उस भरोसे को आग लगा दिया हो जिसमें उसे अपने भाई , मामा भगवान जैसे लगते थे ।

उसके जिंदा लाश की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी छोटी मामी के यहां के ठहाकों को सुन कर वो हैरान हो गया की मां लक्ष्मी अपने साथ लोभ, क्रोध और हम भी लेकर आती हैं और शायद कर्म के हवाले सबको छोड़ देती हैं ।

प्रेम मेरी बात सुनो हमें शॉपिंग पे जाना है कविता जोर जोर से चिल्ला रही थी मानों जैसे कोई छोटी बच्ची हठ कर रही हो तभी अचानक से कविता की आवाज़ सुनते ही प्रेम की आंखे खुली उसने देखा वो जिंदा है और एक और बार उसका एक सपना टूट गया .. 
कहते हैं ना कुछ चीजों का बिखर जाना या टूट जाना अच्छा होता है क्योंकि किसी घुटन से उलझन से कही बेहतर अकेलापन होता है।

सुनो कविता .. अभी प्रेम जिंदा है तुम्हारे लिए , तुम्हारी वजह से और कहते ही उसने जोर से नम आंखो से कविता को गले लगा लिया और लगा जैसे कविता की मौजूदगी से ही वो हर उलझन से खुदबखूद दूर हो गया!












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